कुंडू नदी

कुंडू नदी
कुंडू नदी

कुंडू नदी को पहले कुमुदवती के नाम से जाना जाता था। यह पेन्ना नदी की कई सहायक नदियों में से एक है। कुंडू नदी भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र में ( कुरनूल और कडपा जिले) स्थित है। रायलसीमा के लोगों में यह मान्यता ​​है कि अत्यधिक साहस हासिल करने और दुश्मनों का सामना करने के लिए कुंडू नदी का पानी पीना पड़ता है। आगामी खंडों में कुंडू नदी की जल संबंधित विशेषताएं तथा इस नदी के भयंकर बाड़ के विषय में विस्तार के वर्णन किया गया है।



कुंडू नदी का ऐतिहासिक महत्व-

कुंडू नदी ऐतिहासिक काल से लोगो के जीवन में महत्व रखती है। इस की घाटी को 'रेनाडु' के नाम से भी जाना जाता है और यह 'रेनाती पौरुशम' ( चोल साशन काल में साहस को दर्शाने वाला) शब्द का प्रतीक है। इसी कारण कुंडू नदी तो साहसिकता की कहानियों के साथ जोड़ा जाता है और लोग आज भी यह मानते है को कुंडू नदी में पुण्य स्नान से दुश्मन के दामन की शक्ति मिलती है।

कुंडू नदी का प्रवाह पथ-

कुंडू नदी कुरनूल के ओरवाकल मंडल में स्थित उप्पलापाडु गांव से बहना शुरू होती है। अपने शुरुआती बहाव में यह नदी बिल्कुल झरने की तरह प्रतीत होती है। कुंडू घाटी लगभग 6000 एकड़ के जलग्रहण क्षेत्र मे बहती है और इसमें 41 गांव शामिल हैं।  कुंडू नदी के जल निकासी क्षेत्र में छह विधानसभाएं शामिल जो आंध्र प्रदेश के कुरनूल और कडपा जिले में स्थित है। अंततः यह नदी पेन्ना नदी में विलीन हो जाती है। पेन्ना नदी में विलीन होने से पूर्व, आदिनिम्मया पल्ली गाँव में ( यह गाँव कडप्पा जिले में स्थित है), कुंडू नदी में कई परिवर्तन दर्शित होते हैं।

पेन्ना नदी-

पेन्ना नदी को पेन्नेर या पेनेरू के नाम से भी जाना जाता है। पेन्ना नदी कर्नाटक के चिकबल्लापुर जिले में नंदी पहाड़ियों से बहना शुरू होती है और अंततः बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है। यह मुख्य नदी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से, उत्तर और पूर्व दिशा से होकर बहती है। पेन्ना नदी का मुहाना बंगाल की खाड़ी से 7 किलोमीटर ऊपर की ओर फैला हुआ है। पेन्ना नदी 597 किलोमीटर लंबी है तथा इसका जलग्रहण क्षेत्र 55213 वर्ग किलोमीटर है। पेन्ना नदी घाटी, पूर्वी घाट के वर्षा छाया क्षेत्र का एक हिस्सा है। यह नदी घाटी, प्रति वर्ष 500 मिलीमीटर औसत वर्षा प्राप्त करता है और इस घाटी में शुष्क उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु के साथ अर्ध-शुष्क जलवायु परिस्थितियां रहती है।

कुंडू नदी: 'नंदयाल का शोक'-

कुंडू नदी नंदयाल और कोइलकुंतला के क्षेत्र में नियमित बाढ़ की स्तिथि लाती है, जिसके के लिए यह नदी कुख्यात है। हर साल अत्याधिक बाड़ के कारण इस क्षेत्र में जान और माल की भारी क्षति होती है। जुलाई से दिसंबर बाढ़ के लिए से सबसे खतरनाक अवधि है जिससे भारी नुकसान होता है। यही कारण है कि कुंडू नदी को 'नांदयाल का शोक' कहा जाता है। कुंडू नदी द्वारा लाए गए बाढ़ की सबसे बुरी बात यह है कि यह अप्रत्याशित बाड़ होते है और बार-बार आते हैं। इसके कारण लोग एहतियाती उपाय नहीं कर पाते और बाड़ की चपेट में आ जाते है। नांदयाल के लोग हर साल बाढ़ के गवाह बनते हैं जो कभी-कभी इस क्षेत्र में जीवन के लिए खतरा पैदा कर देती हैं। कुंडू नदी के पास स्थित सारे गांव और नंदयाल शहर लगातार बाढ़ से प्रभावित होते हैं, जिससे संपत्तियों और खेतों को भारी नुकसान होता है। इस क्षेत्र के किसानों को फसल की कटाई तक का दावा नहीं दिया जाता है, क्योंकि कोई भी बाढ़ के सटीक आगमन की भविष्यवाणी नहीं कर सकता है। गैलेरू नदी, पालेरू नदी, निप्पुवागु नदी और संकालवागु नदी सहित कई और धाराएँ बाढ़ के पानी के मुख्य स्रोत हैं। गैलेरू और पालेरू नदियां विशेष रूप से नल्लामाला पहाड़ियों से भारी बाढ़ का पानी बहाकर लाती हैं। कुंडू नदी बरसात के मौसम में, विशेषकर चक्रवाती तूफ़ानो के दौरान, भयंकर रूप लेती है एवं इस समय बाड़ की तीव्रता बड़ जाती है।  

सालों से कुंडू नदी में बाड़ की समस्या-

बहुत सालों से कुंडू नदी तथा अन्य धाराएं हर साल आंध्र प्रदेश में लोगो को बाड़ के भारी समस्या से पीड़ित करती है। 1994 में बाढ़ के कारण लगभग 60 करोड़ का नुकसान हुआ था। 20 अगस्त 2000 को, आधी रात के आसपास, नंदयाल के आस पास के सारे क्षेत्र बाढ़ के पानी से भर गए थे। कस्बे के लगभग सभी लोग संपत्ति के नुकसान हेतु पीड़ित थे और 10 लोगों की मौत भी हो गई थी। 2009 की बहुप्रचारित ( कुख्यात) कुरनूल बाढ़ में, नंदयाल और उसके आस पास के क्षेत्र 5 दिनों के लिए मुख्य सभ्यता से कट गए थे क्योंकि बाढ़ के पानी ने पूरे शहर को घेर लिया था।

Published By
Anwesha Sarkar
09-07-2021

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