दामोदर नदी

दामोदर नदी
दामोदर नदी

दामोदर नदी पश्चिम बंगाल एवं झारखंड के राज्य से बहती है, और यह घाटी खनिज संसाधनों से समृद्ध है। काफी सारी औद्योगिक गतिविधियां इस घाटी में पैदा हुई है। दामोदर नदी को हमेशा से बाढ़ के लिए जाना जाता है और यही कारण है कि इस नदी को बंगाल का दुख ही कहा जाता है। संस्कृत में दामोदर नाम से हिंदू भगवान श्री कृष्ण को बुलाया जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ का मूल है, दामा अर्थात रस्सी और उदर अर्थात। श्री कृष्ण को दामोदर नाम तब दिया गया था जब, उनकी यशोदा मां ने उन्हें एक बड़ी कलश के साथ रस्सी के सहारे बांध दिया था। बंगाल और झारखंड में पानी की समस्या को दूर करने तथा बाढ़ के खतरे को टालने के लिए दामोदर घाटी निगम की संस्था को बनाया गया था। ‌ दामोदर नदी में प्रदूषण की समस्या को दूर करना तथा बाढ़ के खतरे से लोगों को बचाना, यह सारे प्रगतिशील कार्य दामोदर घाटी निगम द्वारा किए गए हैं। 2003 तक दामोदर नदी भारत के सबसे प्रदूषित नदियों में से एक था, परंतु अब इस नदी में प्रदूषण की समस्या ना के बराबर है।‌ पानी की समस्या काफी कम हो चुकी है पर अभी भी औद्योगिक और कृषि क्षमताएं पूरी करने के लिए वर्षा का पानी कम पड़ता है। निम्नलिखित भागों में हम, दामोदर नदी की भौगोलिक विशेषताओं पर ध्यान देंगे तथा पाठक वर्ग को दामोदर नदी के औद्योगिक प्रगतिशीलता से अवगत करेंगे।



दामोदर नदी घाटी में जलवायु परिस्थितियां-

दामोदर घाटी में तीव्र सर्दियाँ और गर्म-आर्द्र ग्रीष्मकाल होते हैं। नवंबर से मई के शुष्क अवधि में वर्षा नहीं होती और आद्रता बहुत कम रहती है। दिसंबर से मार्च के महीनों के दौरान हवा का प्रवाह उत्तर पूर्व दिशा में रहता है और इस घाटी में आद्रता लगभग कम रहती है। जून से सितंबर के दौरान, हवा का प्रवाह दक्षिण-पूर्वी होता है और इस अवधि में उच्च आर्द्रता होती है। सामान्य तौर पर, जून से अक्टूबर के महीनों में लगभग 1,250 मिलीमीटर औसत वार्षिक वर्षा का 90% अनुभव किया जाता है, जिस कारण से कई बार घाटी के निचले इलाकों में भारी बाढ़ की समस्याएं होती है।छोटा नागपुर इलाके में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1400 मिलीमीटर है। वर्षा के समय दामोदर नदी और उसकी सहायक नदियां शक्तिशाली रूप में प्रवाहित होती है और इस दौरान जल स्तर ऊंचा ही रहता है। तिलैया, कोनार, मैथन, पंचेट और दुर्गापुर नामक पांच स्थलों पर बांधों का निर्माण किया गया है जहां, औसत वार्षिक वर्षा क्रमशः 1,117.7 मिलीमीटर, 1,320.8 मिलीमीटर, 1,141.7 मिलीमीटर, 1,142.0 मिलीमीटर और 1,320.8 मिलीमीटर तक होती है।

दामोदर नदी का जल ग्रहण क्षेत्र तथा प्रवाह पथ-

दामोदर नदी का उद्गम स्थल छोटा नागपुर पठार में लगभग 610 मीटर की ऊंचाई पर होती है। दामोदर नदी की कुल लंबाई लगभग 547 किलोमीटर है और कुल जल निकासी क्षेत्र 22,005 वर्ग किलोमीटर है। यह पश्चिम बंगाल में, रानीगंज के नीचे के मैदानी इलाकों में प्रवेश करते हुए, दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती है। 

दामोदर की सहायक नदियाँ निम्नलिखित हैं- कोनार नदी, बराकर नदी, हाहारो नदी, बोकारो नदी, घारी नदी, जामुरिया नदी, खड़िया नदी, गुईया नदी और भीरा नदी। दामोदर नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी बराकर है, जो पश्चिम बंगाल के दिशरगढ़ के पास दामोदर में विलीन होती है। बराकर नदी तथा दामोदर नदी छोटा नागपुर के इलाके को तीन भौगोलिक भागों में विभाजित करती है एवं पहाड़ी क्षेत्रों से होकर बहती है। 

पहले 241.35 किलोमीटर में, दामोदर नदी घाटी की ढलान लगभग 1.89 मीटर / किलोमीटर होता है।  इसके आगे 160 किलोमीटर तक यह ढलान 0.568 मीटर / किलोमीटर होती है और अंतिम 144.8 किलोमीटर के बाहर में दामोदर नदी का ढलान लगभग लगभग 0.189 मीटर / किलोमीटर नदी रहता है। लगभग 241 किलोमीटर तक बहने के बाद, प्रमुख सहायक नदी बामर, मुख्य नदी से जुड़ती है। संगम के ऊपर तक, इस नदी का जलग्रहण क्षेत्र पंखे के आकार का है, लेकिन संगम के नीचे का जलग्रहण क्षेत्र, संकीर्ण है। यहां, इसकी औसत चौड़ाई 16.09 किलोमीटर है। ऊपरी जलग्रहण ज्यादातर, पहाड़ी क्षेत्रों में वन और वनस्पति आवरण से वंचित है, इस क्षेत्र में सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है और खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है। जबकि निचली जलग्रहण भूमि उपजाऊ है, निचले हिस्से में दुर्गापुर बैराज के लगभग 19 किलोमीटर की दूरी से खेतों में सिंचाई होती है। दो सिंचाई नहरें, बाई और की मुख्यधारा और दाएं और की दुर्गापुर बैरेज से शुरू होती है। दामोदर नदी, वर्धमान शहर बहने के बाद यह नदी अपनी दिशा बदल देती है और हुगली नदी में विलीन हो जाती है। हुगली नदी के साथ संगम का यह स्थल कोलकाता से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है।  

दामोदर नदी पर बांध और बिजली परियोजनाओं का निर्माण-

दामोदर नदी में अत्याधिक वर्षा के उपरांत भी जल को सही दिशा में उपयोग नहीं किया जाता था। काफी इलाकों में भारी बाढ़ की समस्या होती थी। तदनुसार, दामोदर घाटी, मैथन, पंचेत, कोनार, तिलैया और तेनुघाट में पांच बांधों का निर्माण किया गया और दुर्गापुर में एक बैराज का निर्माण किया गया था। इसके अलावा, दामोदर घाटी जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए 1948 में दामोदर घाटी निगम की स्थापना की गई थी। दामोदर नदी में बांध निम्नानुसार उद्देश्यों से काम करती है- घरेलू और औद्योगिक जल आपूर्ति, बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और जल विद्युत उत्पादन के लिए काम करते हैं।

दामोदर घाटी निगम- बराकर नदी एवं दामोदर नदी को आगे बढ़ाने के लिए, दामोदर घाटी निगम (DVC) ने स्वतंत्र भारत की पहली बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना की योजना बनाई थी। इस परियोजना के तहत, पहले बांध का निर्माण तिलकिया के बाराकर में किया गया था। डीवीसी द्वारा तिलैया, कोनार, मैथन और पंचेत में चार बांधों का निर्माण किया गया है। 1949 में, डीवीसी द्वारा जलाशय की गाद और मिट्टी की गिरावट जैसी समस्याओं से निपटने के लिए हजारीबाग में मृदा संरक्षण विभाग की स्थापना की गई थी। 

तिलैया बाँध- डीवीसी द्वारा निर्मित पहला बाँध, तिलैया बाँध है, जो झारखंड के हजारीबाग जिले के, तिलैया में स्थित है। तिलैया हाइडल पावर स्टेशन बराकर नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। इसका उद्घाटन 21 फरवरी 1953 को हुआ था। यह बांध 366 मीटर (1,201 फीट) लंबा है तथा नदी के तल से 30.18 मीटर (99.0 फीट) ऊंचा है। यह संरचना पूरी तरह से प्रबलित कंक्रीट का बना है। इस बांध में दो मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है और यह सिंचाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण भी है।

मैथन बांध- डीवीसी द्वारा बनाया गया तीसरा बांध मैथन के नाम से जाना जाता है, जो पहले बिहार का हिस्सा हुआ करता था पर अब झारखंड राज्य में स्थित है। 27 सितंबर 1957 को बांध का उद्घाटन किया गया था।‌ मैथन बांध कि इस क्षेत्र में बराकर नदी पश्चिम बंगाल और झारखंड के बीच सीमा बनाती है। मैथन से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर, बराकर नदी दिशरगढ़ में दामोदर नदी से जुड़ता है। मैथन बांध कंक्रीट और मिट्टी से निर्मित है और 4,860 मीटर (15,940 फीट) लंबा है। यह बांध नदी के तल से 43.89 मीटर (144.0 फीट) ऊंचा है। इस बांध पर निर्मित पावर स्टेशन की उत्पादन क्षमता 60 मेगावाट है, जिसमें 20 मेगावाट की तीन इकाइयाँ बने हैं। मैथन डैम, धनबाद से 48 किलोमीटर (30 मील) और आसनसोल से लगभग 25 किलोमीटर (16 मील) दूर है। यह पर्यटकों के लिए अत्यंत आकर्षक स्थल है। मैथन डैम के निकट ही कल्यानेश्वरी माता का मंदिर स्थित है, जो पर्यटकों के लिए महत्व रखता है। 

दामोदर नदी घाटी की आर्थिक क्षेत्रों मी पानी तथा प्रदूषण की समस्या-

2001 की जनगणना के आधार पर, दामोदर घाटी की आबादी 14.25 मिलियन के करीब थी। औद्योगिक क्षेत्र के लिए, वर्तमान पानी की मांग 663 क्यूबिक मीटर की वर्षा है जो इस घाटी के उपयोग योग्य जल क्षमता का लगभग 15.36% है। पानी की समस्या अभी भी इस घाटी से पूरी तरह मिटी नहीं है। इस घाटी में, वर्षा तो भारी मात्रा में अनुभव किया जाता है, पर उस बारिश के पानी को सही तरीके से व्यवहार नहीं कर पाया जाता है। नए थर्मल पावर प्लांट्स, ईंट के खेतों, चावल मिलों और कोल्ड स्टोरेज आदि के कारण वर्ष 2021 तक यह मांग बढ़कर लगभग 884 क्यूबिक मीटर की वर्षा, होने की संभावना है। दामोदर घाटी में खेती के योग्य भूमि 390 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। 2001 में के लिए दामोदर घाटी में कृषि उपयोग के लिए पानी की मांग लगभग 652.41 क्यूबिक मीटर की वर्षा थी, और मांग, वर्ष 2021 तक 1,948 क्यूबिक मीटर की वर्षा तक तेजी से बढ़ने का अनुमान है। वर्तमान में, दामोदर घाटी के सिंचाई के लिए बुनियादी ढांचा अत्यधिक अपर्याप्त है।

दामोदर नदी में जितनी भी दूषण होती है वह पूर्ण रूप से औद्योगिक और खनिज क्षेत्र से आती है। दामोदर घाटी खनिज उत्पादन का बलिष्ठ संसाधन है और कोयला उन्मुख उद्योग इस घाटी में बहुत सारे हैं। कोयला-उन्मुख उद्योग अधिकांश सरकारी स्वामित्व वाले ( कोक ओवन नामक संस्था) है। भारत में कोयला वॉशर, महत्वपूर्ण लोहा तथा इस्पात संयंत्र; ग्लास, जस्ता एवं सीमेंट संयंत्र; और थर्मल पावर प्लांट, काफी हद तक दामोदर घाटी से आते हैं। प्रदूषण, अत्यधिक खुदाई, तेल, फ्लाई ऐश, जहरीली धातुओं, साथ ही कोयले की धूल सी होता है।



 

Published By
Anwesha Sarkar
08-05-2021

Related Rivers
Top Viewed Forts Stories