श्री राधाष्टकम

श्री राधाष्टकम
श्री राधाष्टकम

नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै, नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै।
सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्त:, प्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम्।।

स्ववासोSपहारं यशोदासुतं वा, स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम् ।
स्वदाम्नोदरं या बबन्धाशु नीव्या, प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसीं ताम्।।

दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं, महाप्रेमपूरेण राधाभिधाSभू: ।
स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ, प्रपन्नाय मे कृष्णरूपे समक्षम्।।

मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्ध:, पतंगो यथा त्वामनुभ्राम्यमाण:।
उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन्कृ, पा वर्तते कारयातो मयेष्टिम्।।

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं, मुकुन्देन साकं विधायांकमालम् ।
सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षै:, श्रियं चिन्तयेत् सच्चिदानन्दरूपाम्।।

मुकुन्दानुरागेण रोमांचितांगी, महं व्याप्यमानां तनुस्वेदविन्दुम् ।
महाहार्दवृष्टया कृपापांगदृष्ट्या, समालोकयन्तीं कदा त्वां विचक्षे।।

पदांकवलोके महालालसौघं, मुकुन्द: करोति स्वयं ध्येयपाद:।
पदं राधिके ते सदा दर्शयान्त, र्हृदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम्।।

सदा राधिकानाम जिह्वाग्रत: स्यात्स, दा राधिका रूपमक्ष्यग्र आस्ताम्।
श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्त:स्वभावे, गुणा राधिकाया: श्रिया एतदीहे।।

इदं त्वष्टकं राधिकाया: प्रियाया:, पठेयु: सदैवं हि दामोदरस्य।
सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि, सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूला:।।

इति श्रीभगवन्निम्बार्कमहामुनीन्द्रविरचितं श्रीराधाष्टकं सम्पूर्णम्।

मंत्र अर्थ : हे श्री राधिके ! आपको प्रणाम है, आप मुकुंद की प्रियतमा हो आपको प्रणाम है।
सदानंद स्वरुप देवी !आप मेरे हृदय के अंतःकरण के प्रकाश में श्याम सुन्दर श्री कृष्ण के साथ सुशोभित हो आप मुझ पर प्रसन्न होहिये।।1।।

मै आपको प्रणाम करता हूँ जिन्होंने अपने वस्त्र का अपहरण किया और दूध दही, माखन चुराने वाले यशोदा नंदन भगवान श्री कृष्णा की आराधना करती है माँ यशोदा ने अपने बंधन से भगवान को बांध लिया था, और उनका नाम दामोदर हो गया। उन भगवान दामोदर को मै प्रणाम करता हूँ।।2।।

हे श्रीराधे ! भगवान श्री कृष्णा की आराधना कठिन है, अपने भगवान की आराधना करके प्रेमसिन्धु की बाढ़ से उन्हें वश में कर लिया। श्री कृष्णा की आराधना के कारण आप राधा नाम से प्रसिद्ध है।
श्रीकृष्णस्वरूप ! यह नाम अपने स्वयं ही किया है, आपके पास शरण में आये मुझे श्री हरी का प्रेम प्रदान करो।।3।।

आपकी प्रेम में बंधे हुए भगवान श्री कृष्णा उस पतंगे की भांति चक्कर लगाते रहते है जैसे वह दीपक के चारो ओर। प्रेम के साथ वह आपके साथ रहते है ओर क्रीङा करते है, हे राधारानी ! आप अपनी कृपा करिये और भगवान् की आराधना करवाईये।।4।।

जो प्रतिदिन समय से श्री कृष्ण भगवान को अपने अंक की पुष्प माला अर्पित करके अपनी लीला भूमि वृन्दावन में विहार करती है। भक्तजनो पर प्रयुक्त होने वाले कृपा से सुशोभित सच्चिदानंद श्री भगवान का चिंतन करिये।।5।।

हे श्री राधे ! आपके मन में भगवान श्रीकृष्ण का प्रगाढ़ अनुराग व्याप्त है आपके श्री अंग सदा रोमांच से विभूषित है और अंग अंग सूक्ष्म स्वेदबिन्दुओ से सुशोभित होता है। आप अपनी कृपा दृष्टि और प्रेम सागर से मुझे देख रही है, इस अवस्था में मुझे कब आपका दर्शन होगा।।6।।

हे श्री राधे ! भगवान श्याम सुन्दर ऐसे है की उनके चरणों का चिंतन करना चाहिए और वे आपके चरणों की अभिलाषा करते है मै आपको प्रणाम करता हूँ।
मेरे हृदय के अंतःकरण में आप अपने चरणों का दर्शन कराईये।।7।।

मेरी जिह्वा के अग्रभाग पर श्री राधा का ही नाम विराजमान रहे, मेरे नेत्रों के समक्ष सदा श्री राधा का रूप ही प्रकाशित हो। मेरे कानो को श्री राधा रानी आपकी कीर्ति और कथा सुनाई दे। और अंतर में श्री लक्ष्मी स्वरुप श्री राधा रानी के ही गुणों का चिंतन हो यही मेरी कामना है।।8।।

दामोदर प्रिय श्री राधा रानी की स्तुति का पाठ करने वाले लोग सदा इस रूप में पाठ करते है वे श्री कृष्ण धाम वृन्दावन में युगल सरकार की सेवा के अनुकूल शरीर पाकर सुख से रहते है, मै श्री राधा रानी आपको प्रणाम करता हूँ ।। 9।।

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