यूरोपा- चमकता हुआ बृहस्पति का चंद्रमा (17 November 2020)

यूरोपा- चमकता हुआ बृहस्पति का चंद्रमा (17 November 2020)
यूरोपा- चमकता हुआ बृहस्पति का चंद्रमा (17 November 2020)

हमारे सौर्य मंडल का पांचवा ग्रह ही सबसे बड़ा ग्रह है, जिसे हम भी बृहस्पति के नाम से जानते हैं। बृहस्पति अन्य सभी ग्रहो के संयुक्त आकार से भी 2 गुना से अधिक वृहत्तर है। बृहस्पति ग्रह का नामकरण हिन्दू कथाओं में देवताओं के गुरु, पर हुआ है। बृहस्पति हिन्दू धर्म में देवताओ के गुरु थे। उन्होंने महाभारत के समय में भीष्म पितामह को शिक्षा प्रदान की थी और बाद में विदुर को भी शिक्षा प्रदान की। आज के लेख को बृहस्पति ग्रह के 4 चंद्रमा की ओर समर्पित किया जाएगा। इनमें से यही बात आश्चर्यचकित कर देने वाली है कि, बृहस्पति ग्रह के तीव्र विकिरण के कारण उसके एक चंद्रमा, यूरोपा को चमकते हुए देखा गया है।

बृहस्पति ग्रह के उपग्रह-
1610 मैं जब गैलीलियो ने पृथ्वी के चंद्रमा के अलावा दूसरे उपग्रहों की उपस्थिति के बारे में खोज किया, तभी हमें ज्ञात हुआ कि इस संपूर्ण ब्रह्मांड में और भी आकर्षिक उपग्रहों की खोज की जा सकती है। यही समय सॉरी मंडल की निपुल खोज में क्रांति का समय है। गैलीलियो ने यह आविष्कार किया कि बृहस्पति के चार उपग्रह या चंद्रमा मौजूद हैं, जिनका नाम कुछ इस प्रकार है- लो, यूरोपा, गेनीमेड एवं कैलिस्टो। इन सारे चंद्रमा को आज गैलीलियन चंद्रमा के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में बृहस्पति के लगभग 79 उपग्रह आविष्कार हुए हैं, जिनमें से 53 उपग्रह नामांकित हुए हैं।

उपग्रहों की संरचना-
बृहस्पति के चार बड़े उपग्रहों में से तीन चंद्रमा में हमें अंदरूनी स्तरित संरचना देखने को मिलती है। लो, यूरोपा और गेनीमेड उपग्रहों के अंदरूनी हिस्से स्थरित है। लो उपग्रह में एक कोर है जिसके ऊपर आंशिक रूप से पिघला हुआ एक आच्छादन है। लो उपग्रह की सतह चट्टानों से बनी हुई है जिस पर सल्फर की मात्रा का परत है। यूरोपा एवं गेनीमेड उपग्रहों में भी कोर है जिसका चारों ओर चट्टानों से घिरा है। इसी चट्टान समान अंदरूनी हिस्से के ऊपर एक मोटी नरम बर्फ का परत विराजमान है। यूरोपा उपग्रहों की बात की जाए तो हम यह कह सकते हैं कि, मोटी नरम बर्फ की परत कि नीचे ही मलीन हुई जल की परत दिखाई देती है। दूसरी तरफ बृहस्पति के चौथे उपग्रह, कैलिस्टो स्तरो‌ की पहचान सब तरह से नहीं की जा सकी है। मालूम होता है कि कैलिस्टो उपग्रह का अंदरूनी भाग चट्टान एवं बर्फ का सम्मिश्रण है।

चमकता हुआ यूरोपा-
पृथ्वी का अपना मैग्नेटोस्फीयर है, वैसे ही बृहस्पति ग्रह का भी अपना मैग्नेटोस्फीयर है, परंतु जो रेडियो तरंगे बृहस्पति विकिरण करता है, उसकी शक्ति अत्याधिक है। यही ऊर्जा विकिरण जू बृहस्पति ग्रह से यूरोपा उपग्रह तक पहुंचती है, तब ऊर्जा के विस्फोट समान घटना घटती है। जैसे कि पूर्व अनुच्छेद में हमने देखा है कि यूरोप उपग्रह का ऊपरी अंदरूनी भाग मोटी नरम बर्फ की परत समान प्रतीत होती है। कई वैज्ञानिकों ने यूरोपा को नेत्र गोलक के रूप में वर्णन किया है। नासा के अनुसार संभावना यह भी हो सकती है कि यही बर्फ की परत 10 से 15 मील मोटी और 40 से 100 मील गहरी समुद्र पर तैर रही हो। पिछले अनुच्छेद में इसी पानी को मलिन जल के रूप में व्याख्या किया गया है।

वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार बृहस्पति के इलेक्ट्रॉन जब यूरोपा की बर्फीली सतह पर गिरती है तब सतह के नीचे मौजूद अणुओं के परस्पर क्रिया की वजह से यूरोपा का अंधेरा पक्ष चमकने लगता है। इसी शोध को एक प्रयोगशाला में भी वैज्ञानिकों ने दोबारा किया गया था। यहा उच्च ऊर्जा इलेक्ट्रॉन एवं विकिरण पर्यावरण परीक्षण हेतु आइस चेंबर का निर्माण किया गया था। इसी शोध की एक वैज्ञानिक गुडीपति जी ने कहा- बृहस्पति से विकिरण द्वारा यूरोपा का अंधेरा अंश चमकता है, यदि यही समीक्षा ना हुआ होता तो यूरोपा भी पृथ्वी के चंद्रमा सा प्रतीत होता। पृथ्वी के चंद्रमा की तरह यूरोपा सूर्य के किरणों उज्जवलित नहीं होता। इसी शोध के द्वारा यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि यूरोपा में नमक या सोडियम क्लोराइड एवं मैग्निशियम सल्फेट की उपस्थिति है, जो कि यूरोपा को चमकाने में सहायक है। यूरोपा की चमक हरे रंग, नीले रंग या सफेद रंग सा प्रतीत होता है।

यूरोपा के भविष्य की ओर-
गुडीपति एवं उनके अन्य वैज्ञानिक सहायक ने भविष्य के मिशन की आशा कर रखी है। यदि रात के समय में अंतरिक्ष यान द्वारा यूरोपा के अंधेरे पक्ष की जांच की जाए तो संभावना है कि प्रकाश की झलक दिखाई दे। साल 2025 तक नासा के यूरोपा क्लिपर मिशन द्वारा यह जांच संभव की जाएगी। भविष्य के इसी शोध से निर्धारण किया जाएगा की यूरोपा के नीचे कभी जीवन संभव हुआ है या नहीं। इसके अलावा गेनीमेड उपग्रह का विश्लेषण भी इसी मिशन के द्वारा पूर्णतः समझाया जाएगा। यूरोपा क्लिपर मिशन का एक अंश यह भी जांच करेगा कि बृहस्पति के विकिरण का गेनीमेड उपग्रह पर क्या प्रभाव है।

पूर्व अनुच्छेदों में यूरोपा के अंदरूनी भाग में मलीन जल की बात की गई है। यही चल एक विशाल महासागर के होने का प्रमाण भी बन सकता है। यूरोपा क्लिपर मिशन के अंतर्गत यह भी ज्ञात किया जाएगा कि यूरोपा उपग्रह पर जीवन की संभावना कैसी है।

Published By
Anwesha Sarkar


Related Current Affairs
Top Viewed Forts Stories